HomeJharkhand"पोलीट्रामा से कैसे बचा जाय" विषय पर सेमिनार

“पोलीट्रामा से कैसे बचा जाय” विषय पर सेमिनार

पारस एचईसी अस्पताल ने राँची के होटल रेडिसन ब्लू में पोलीट्रामा को लेकर एक जागरूकता कार्यक्रम किया।

राँची का पारस एचईसी अस्पताल और सोसाइटी ऑफ़ इमरजेंसी मेडिसिन इन इंडिया (SEMI) के सह संयोजन में पोलीट्रामा का प्रबंधन और इससे बचाव को लेकर एक सेमिनार का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में राज्यभर से आए स्थानीय चिकित्सकों को पोलीट्रामा का सम्पूर्ण प्रबंधन कैसे हो और इसके मरीज़ को कैसे बेहतर इलाज कर बचाया जा सकता है, इसके बारे में जानकारी दी गई। कार्यक्रम में सहभागिता निभाने वाले सभी प्रतिभागियों को सोसाइटी ऑफ़ इमरजेंसी मेडिसिन इन इंडिया (SEMI) के तरफ़ से प्रमाण पत्र भी दिया गया। राँची के होटल रेडिसन ब्लू में दोपहर में एडवांस ट्रामा लाइफ सपोर्ट कार्यशाला भी हुई।

शुरुआती इलाज में असावधानी ना हो : डॉ नीतेश

पारस एचईसी अस्पताल के डॉ नीतेश कुमार ने बताया की राज्य के सुदूरवर्ती इलाक़े के चिकित्सक सबसे पहले मरीज़ को इलाज उपलब्ध कराते हैं, उसके बाद ही मरीज़ को हमारे यहाँ बेहतर इलाज के लिए भेजते हैं। हम चाहते हैं कि मरीज़ जब हमारे पास आए उसके पहले शुरुआती इलाज में किसी भी तरह की असावधानी ना बरती गई हो, क्योंकि मरीज़ की प्राथमिक चिकित्सा में किसी भी तरह की असावधानी बरती जाती है, तो फिर उस मरीज़ की आगे का इलाज करने में काफ़ी परेशानी आती है ।
कार्यक्रम में सोसाइटी ऑफ़ इमरजेंसी मेडिसिन इन इंडिया (SEMI) के राष्ट्रीय संयुक्त सचिव डॉ सुदीप चक्रवर्ती ने पोलीट्रामा के मरीज़ों का प्राथमिक प्रबंधन कैसे हो, इस पर चर्चा की। साथ ही सोसाइटी ऑफ़ इमरजेंसी मेडिसिन इन इंडिया (SEMI) के उपाध्यक्ष डॉ राम्यजीत लाहिरी ने भी उपस्थित लोगों के बीच अपने विचार रखे।

मरीज़ों को एक स्वस्थ जीवन देना हमारा संकल्प : कुमार यशवंत

मौक़े पर उपस्थित पारस एचईसी अस्पताल के मार्केटिंग महाप्रबंधक कुमार यशवंत ने कहा कि इस कार्यक्रम का मुख्य मक़सद राज्य के सुदूरवर्ती चिकित्सकों को मरीज़ की प्राथमिक चिकित्सा के बारे में प्रशिक्षित करना है। विशेषकर पोलीट्रामा के मरीज़ को कैसे जाँच करनी है और किस तरह से शुरुआत में उनका इलाज करना है , इसके बारे में चिकित्सकों को इस कार्यक्रम के माध्यम से जानकारी दी जा रही है, ताकि पारस अस्पताल में मरीज़ के आने के बाद उनका ठीक ढंग से इलाज किया जा सके और उन्हें एक स्वस्थ एवं सामान्य जीवन मिल सके।
पोलीट्रामा का मतलब होता है किसी मरीज़ के कई सारे अंग एक साथ विफल हो जाना । जब किसी व्यक्ति की दुर्घटना होती है तो उसके सिर से लेकर शरीर के कई हिस्सों में चोट लगती है ।जिसके कारण यह पता नहीं चल पाता है कि उसके शरीर का कौन-कौन सा हिस्सा विफल हुआ है।

पोलीट्रामा के शिकार ज़्यादातर युवा होते हैं : डॉ शिव अक्षत

डॉ शिव अक्षत ने कहा की पोलीट्रामा के मरीज़ का दुर्घटना स्थल से लेकर ICU तक विशेष ध्यान रखना पड़ता है। ख़ासकर युवा वर्ग के लोग ज्यादातर पोलीट्रामा के शिकार होते हैं।

पोलीट्रामा में गोल्डन ऑवर का ख़ास महत्व है : डॉ मेजर रमेश दास

डॉ मेजर रमेश ने बताया कि पोलीट्रामा के मरीज़ का इलाज दुर्घटना स्थल से ही शुरू हो जाता है। दुर्घटना स्थल से मरीज़ को अस्पताल लाने तक काफ़ी सावधानी बरतनी पड़ती है। समय का ध्यान रखते हुए मरीज़ को गोल्डन ऑवर के भीतर ही अस्पताल पहुँचाना आवश्यक हो जाता है , क्योंकि यदि ज़रा भी देर हुई तो मरीज़ की जान को ख़तरा हो सकता है । इस कार्यक्रम के माध्यम से पोलीट्रामा के मरीज़ को दुर्घटना होने के बाद किस तरह से इलाज करना है और कैसे अस्पताल तक ले जाना है इसके बारे में स्थानीय चिकित्सकों को जानकारी दी जा रही है।

दुर्घटना होने के तुरंत बाद एम्बुलेंस को फोन करें : डॉ सचिन

पारस एचईसी अस्पताल के न्यूरो सर्जन डॉ सचिन कुमार सिंह ने बताया कि पोलीट्रामा के मरीज़ को किसी भी अप्रशिक्षित व्यक्ति के द्वारा इलाज नहीं करनी चाहिए, क्योंकि पोलीट्रामा के मरीज़ की यदि सही से शुरुआती जाँच नहीं की गई तो उसकी स्थिति बिगड़ सकती है । दुर्घटना होने के तुरंत बाद एम्बुलेंस को फोन करनी चाहिए क्योंकि एम्बुलेंस के कर्मचारियों को मरीज़ को दुर्घटना स्थल से अस्पताल तक कैसे ले जाना है इसके बारे में प्रशिक्षण दिया जाता है।

पोलीट्रामा के इलाज में पूरी टीम की ज़रूरत होती है : डॉ अबिन पाल

इमरजेंसी विभाग के प्रमुख डॉ अबिन पाल ने बताया कि पोलीट्रामा के इलाज के लिए एक ही जगह इलाज से संबंधित सारे चिकित्सकों की उपस्थिति आवश्यक है जैसे की सर्जरी की टीम, रेडियोलॉजी की टीम एवं MRI की टीम आदि। क्योंकी पोलीट्रामा में शरीर के विभिन्न अंगों की जाँच एक साथ करनी पड़ती है, ताकि पता लगाया जा सके कि मरीज़ का कौन-कौन अंग दुर्घटना में विफल हुआ है और फिर उसका इलाज शुरू किया जा सके।
उन्होंने बताया कि दुर्घटना होने के बाद शुरूआती पहला घंटा काफ़ी क़ीमती होता है, जिसे हम “गोल्डन ऑवर” भीकहते हैं ।मरीज़ को उस समय के भीतर ही किसी भी पोलीट्रामा के इलाज के लिए सुविधायुक्त अस्पताल में पहुँचा देनी चाहिए ।राज्य के पारस एचईसी अस्पताल में पोलीट्रामा के मरीज़ों के इलाज की सुविधा अत्याधुनिक सुविधाओं एवं अनुभवी चिकित्सकों के साथ चौबीसों घंटे उपलब्ध है।

अंगों को काटने से बचाया जा सकता है : डॉ विवेक गोस्वामी

डॉ विवेक गोस्वामी ने बताया कि किसी भी तरह की दुर्घटना में यदि किसी व्यक्ति के शरीर का कोई अंग कट गया है तो, उसे तत्काल अस्पताल लाकर कटे हुए अंगों को फिर से जोड़ा जा सकता है। या फिर यदि कोई अंग ज़्यादा ख़राब/लाचार हो गया है तो उसे कटने से बचाया जा सकता है।

पोलीट्रामा में खून का सी अनुपात हो : डॉ अंकुर सौरव

डॉ अंकुर सौरव ने बताया कि पोलीट्रामा के मरीज़ को खून की ज़्यादा आवश्यकता होती है। मरीज़ को किस तरह से खून देना चाहिए, कितनी मात्रा में खून देनी चाहिए और किस अनुपात में खून देना चाहिए। इसके बारे में डॉ अंकुर ने अपने अनुभवों को चिकित्सकों के साथ साझा किया ।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments