रांची:
वैश्विक स्तर पर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में माइनिंग क्षेत्र एक प्रमुख हिस्सेदार रहा है। अनुमानित रूप से कुल उत्सर्जन का 4 से 7 फीसदी माइनिंग गतिविधियों के हिस्से में आता है। कोरोना महामारी के दंश को झेलते हुए मानवता नें हाल ही में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (सीओपी-26), ग्लासगो, स्कॉटलैंड में आयोजित किया गया। इस संगोष्ठी का मजमून यह रहा की हमें अपने भविष्य के लिये हरियाली पर और मजबूती से ध्यान देना होगा ।
लेकिन एक स्थाई भविष्य के लिए माइनिंग क्षेत्र को भी नजरंदाज नहीं कर सकते। मानव विकास के आधार स्तम्भ होने के बावजूद माइनिंग को हमेशा नकारात्मक छवि में ही देखा गया है। हालांकि अन्य देशों और उद्योगों के तरह जलवायु परिवर्तन के प्रति हमें भी अपनी प्रतिबद्धता दिखानी होगी। और इसके भागीरथी प्रयास शुरू भी हो चुके हैं। कृत्रिम बौद्धिकता, ऑटोमेशन, बिग डेटा, हाइड्रोजन ईंधन सेल और नवकरणीय ऊर्जा जैसी नई तकनीकों ने खनन उद्योगों में क्रांतिकारी परिवर्तन किया है। इन तकनीकों के माध्यम से सुरक्षा, उत्पादकता और दक्षता तीनों हीं बढ़ रही हैं जो कि उद्योग हित के मूल स्तंभों में से हैं।
ऑटोमैटिक माइनिंग ऑपरेशन, कन्ट्रोल्ड ब्लास्टिन्ग, स्वचालित ड्रोन, रोबोटिक्स, इलेक्ट्रिक वाहन / हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहन, डिजिटलीकरण जैसी तकनीकों ने पारंपरिक खनन क्षेत्र का चेहरा बदल दिया है। अब, न्यूनतम नुकसान के साथ अधिकतम कुशलता की अवधारणा माइनिंग क्षेत्र में भी पूरी हो रही है। आधुनिक उत्खनन की वृहद परियोजनाएं ने कम से कम व्यवधान और नुकसान के साथ मूर्त रूप लिया है। उन्नत टैक्नोलॉजी और मशीनें यह सुनिश्चित कर रही हैं कि जमीन के ऊपर की संरचनाओं और आकार पर कोई भूकंपीय हस्तक्षेप न हो। इन मशीनों ने परियोजना के परिवेश को कम से कम नुकसान पहुंचाकर विकास को संभव बनाया है।
दिल्ली की मेट्रो रेल का निर्माण माइनिंग क्षेत्र के अजूबे का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। अधिकांश मेट्रो रूट का निर्माण घनी आबादी वाले क्षेत्रों में भूमिगत किया गया है जिससे न्यूनतम व्यवधान के साथ सुगम आवागमन कम समय में सुनिश्चित हो सके। दिल्ली में कुतुब मीनार से सटे क्षेत्रों में अत्याधुनिक तकनीकों के साथ किए गए मेट्रो रूट का निर्माण भी इसका ही उदाहरण है, जहां प्राचीन और ऐतिहासिक महत्व की मीनार को सुरक्षित रखते हुए, व्यस्ततम क्षेत्र की आबादी को भविष्य के ट्रांसपोर्ट की सुविधा मिल सकी।
राजस्थान में चित्तौड़गढ़ किले से सटे सीमेंट क्लस्टर में चूना पत्थर खनन की भी अनुमति दी गई है। जो कि अपने आप में एक और उदाहरण है, जहां ऐतिहासिक महत्व की और भी हेरिटिज विरासत मौजूद हैं। साथ ही दिल्ली मेट्रो का संचालन मध्यप्रदेश द्वारा बनाई जा रही सौर ऊर्जा से किया जा रहा है। रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर पार्क द्वारा बनाई गई ऊर्जा दिल्ली मेट्रो को नैशनल ग्रिड के माध्यम से संचालित करती है। इस प्रकार यह खनन इंजीनियरिंग और हरित ऊर्जा क्षेत्र में एक अनूठा चमत्कार है। ऐसी कितनी ही जलराशियों पर बनी परियोजनाएं हैं जिनके बारे में हम सुनते भी रहते हैं, जिनकी कल्पना करना कुछ दशक पहले असंभव था।
आधुनिक तकनीक का उपयोग करने के लिए कई परियोजनाएं आगे आ रही हैं। उदाहरण के लिए, मध्य प्रदेश में छतरपुर जिले की बक्सवाहा तहसील में हीरा खनन परियोजना, खनन क्षेत्र में अत्याधुनिक तकनीकों को लागू करेगी। बंदर परियोजना अक्षय ऊर्जा का प्रयोग करके पर्यावरण के नुकसान को कम करेगी। एक तरफ, परियोजना अपने संचालन में इलेक्ट्रिक वाहनों/हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग करेगी और दूसरी तरफ, यह पानी के उपयोग और स्मार्ट जल संचयन की तकनीक का भी प्रयोग करेगी।
भारत का खनन उद्योग निश्चित रूप से आर्थिक विकास और विकास को एक मजबूत बढ़ावा दे सकता है। सुरक्षा, स्थिरता और उत्पादकता को प्राथमिकता देते हुए खनन कार्यों में टैक्नोलॉजी को अपनाने में लगातार प्रगति हो रही है। औद्योगिक गतिविधियों में वृद्धि और बुनियादी ढांचे के लगातार विकास खनन कंपनियों को आकर्षक अवसर प्रदान करेंगे। अत्याधुनिक तकनीकों के उद्भव के साथ हम कम से कम परिवर्तन के साथ अधिक से अधिक कुशलता पूर्वक इसका दोहन कर सकेंगे।