Homenationalफर्स्ट माइल कनेक्टिविटी से कोयला परिवहन में क्रांति आएगी

फर्स्ट माइल कनेक्टिविटी से कोयला परिवहन में क्रांति आएगी

कोयला मंत्रालय मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी विकसित करने के लिए 26000 करोड़ रुपये की लागत वाली रेलवे परियोजनाएं शुरू कर रहा है। 885 मीट्रिक टन क्षमता वाली 67 एफएमसी परियोजनाओं पर काम जारी है। इससे स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण का निर्माण होगा

भारत की ऊर्जा सुरक्षा को सुदढ़ बनाने करने और आयातित कोयले पर निर्भरता कम करके आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण को साकार करने के लिए, कोयला मंत्रालय लगातार राष्ट्रीय कोयला लॉजिस्टिक योजना के विकास पर कार्य कर रहा है। इसमें कोयला खदानों के पास रेलवे साइडिंग के माध्यम से फर्स्ट माइल कनेक्टिविटी (FMC) शामिल है। कोयला मंत्रालय ने FMC परियोजनाओं के अंतर्गत मशीनों द्वारा कोयला परिवहन और लोडिंग प्रणाली में सुधार के लिए योजना तैयार की है।

सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में फर्स्ट माइल कनेक्टिविटी की अवधारणा पूर्ण रूप से परिवर्तन लाने का एक विशिष्ट कदम है, जो गेम-चेंजर के रूप में उभरा है। यह अभूतपूर्व दृष्टिकोण कोयला परिवहन में क्रांति ला रहा है और पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

फर्स्ट माइल कनेक्टिविटी निकटतम रेलवे साइडिंग तक कन्वेयर या सड़कों का उपयोग करके खनन क्षेत्रों में कोयले को सड़क मार्ग से ढुलाई की प्रक्रिया को समाप्त करती है। सड़क के माध्यम से निकटतम रेलवे साइडिंग तक कोयले को ले जाने से सड़क पर ट्रकों की संख्या में बढ़ोतरी होती है। यह वायु प्रदूषण, सड़क पर ट्रकों की भीड़ और सड़क क्षति जैसे प्रभावों को कम करता है, जिससे एक स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण बनते में सहायता मिलती है।

NCL में फर्स्ट माइल कनेक्टिविटी परियोजना

NCL में कोयले की 1BT मशीनीकृत हैंडलिंग की क्षमता हासिल करने के लिए 885 एमटी क्षमता वाली कुल 67 फर्स्ट माइल कनेक्टिविटी (FMC) परियोजनाएं (59–कोल इंडिया लिमिटेड (CIL), 5-सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड (SCCL) और 3–एनएलसी इंडिया लिमिटेड (NLCIL) तीन चरणों में शुरू की जा रही हैं। पीएम गतिशक्ति के लक्ष्य के अनुरूप, कोयला मंत्रालय ने 26000 करोड़ रुपये की लागत वाली रेलवे परियोजनाएं शुरू की हैं। इन योजनाओं के माध्यम से मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी विकसित की जा सकेगी।

FMC से ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट भी घटेगी 

फर्स्ट माइल कनेक्टिविटी (FMC) प्राकृतिक संसाधनों और हरित आवरण के संरक्षण में योगदान देता है। इसे अपनाने से, कोयला खनन कार्य लंबे समय में आर्थिक रूप से अधिक व्यवहारिक हो जाता है। प्रौद्योगिकी-संचालित प्रक्रियाओं को लागू करने से न केवल उत्पादकता बढ़ती है बल्कि परिचालन लागत भी कम होती है। इससे कोयला क्षेत्र को लाभ मिलता है। इससे जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव कम होता है और वायु गुणवत्ता में सुधार होता है।

कोयला मंत्रालय कोयला निकासी और वितरण क्षमता को बढ़ाने के लिए रेल मंत्रालय के साथ काम कर रहा है। इस समय कोयला वितरण क्षमताओं के विस्तार के लिए रेल मंत्रालय के सहयोग से 13 रेलवे लाइनों का निर्माण किया जा रहा है, जो निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं।

कोयला परिवहन की फर्स्ट माइल कनेक्टिविटी देश में परिवहन चुनौतियों का मुकाबला करने और कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए पर्यावरण के प्रति जागरूक समाज के निर्माण में आशा की किरण बनकर उभरी है। पर्यावरण पर फर्स्ट माइल कनेक्टिविटी का प्रभाव बहुआयामी और दूरगामी है:

कार्बन में कमी: परिवहन प्रणालियों को अनुकूलित करने और जीवाश्म ईंधन से चलने वाले वाहनों पर निर्भरता कम करने से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को काफी हद तक कम करने, जलवायु परिवर्तन से निपटने और इसके हानिकारक प्रभावों को कम करने में मदद मिलेगी।

प्राकृतिक पर्यावरण का संरक्षण: पर्यावरण-अनुकूल परिवहन नेटवर्क स्थापित करने से प्राकृतिक आवास और जैव विविधता को बनाए रखने में मदद मिलती है। इससे भावी पीढ़ियों के लिए पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण होता है।

सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार: वायु प्रदूषण और यातायात की भीड़ कम होने से श्वसन और तनाव संबंधी रोगों का फैलने प्रसार कम होगा और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

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