HomeJharkhandऐसी नियोजन नीति लागू करने का क्या औचित्य ?

ऐसी नियोजन नीति लागू करने का क्या औचित्य ?

यह नियमावली भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 व 16 के प्रावधानों का उल्लंघन है । सरकार की यह नियमावली संवैधानिक प्रावधानों पर खरी नहीं उतरती है-हाईकोर्ट

विजय केशरी:

ऐसी विसंगति पूर्ण नियोजन नीति लागू करने का क्या अर्थ है ? फलत: आज झारखंड के सभी जिलों में हजारों हजार की संख्या में बेरोजगार छात्र गण पुरजोर विरोध कर रहे हैं ।‌ झारखंड की राजधानी रांची में इस नियोजन नीति को लेकर बेरोजगार छात्र सड़कों पर उतर आए हैं । लाखों की संख्या में झारखंड के बेरोजगार छात्र अपनी अपनी प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी में जुटे हुए थे।‌ उन्हें उम्मीद थी कि इस नियोजन नीति के अस्तित्व में रहने पर कहीं न कहीं नौकरी मिल जाएगी ।‌ लेकिन झारखंड हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद उनकी तैयारियों और सपनों पर ग्रहण लग गया है। अब सवाल यह उठता है कि झारखंड सरकार ने ऐसी विसंगति पूर्ण नियोजन नीति क्यों लागू की थी ? क्या राज्य सरकार इस नियोजन नीति को लागू करने से पूर्व इसके कानूनी पक्षों पर विचार नहीं की थी ? अगर विचार की थी, तब हाईकोर्ट ने उस पर क्यों रोक लगाया? अर्थात नियोजन नीति त्रुटिपूर्ण थी। क्या सिर्फ सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए झारखंड सरकार ऐसी विसंगति पूर्ण नियोजन नीति को लागू की थी ? मेरी दृष्टि में राज्य सरकार ने ऐसी नियोजन नीति लागू कर बहुत बड़ी भूल की है।
इस त्रुटिपूर्ण नियोजन नीति के कारण लाखों बेरोजगार छात्रों की तैयारियों पर ग्रहण लग गया हो, जैसा कार्य हुआ है ।‌ यह राज्य सरकार की बड़ी भूल है। राज्य सरकार को यह विचार करना चाहिए कि विधानसभा से कोई ऐसा कानून नहीं पारित करें, जो आम जन के मौलिक अधिकारों को प्रभावित करता हो। राज्य सरकार को राज्य के बेरोजगार नौजवानों के हित में अगर कोई फैसला ही लेना है, कानून सम्मत ही निर्णय लेना होगा। भारत का संविधान देश के प्रत्येक राज्यों के नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करता है ।‌ देश के विभिन्न राज्यों में रहने वाले सभी नागरिकों के मौलिक अधिकार एक समान है। कोई भी राज्य सरकार राज्य के नागरिकों के मौलिक अधिकारों के विपरीत फैसला नहीं ले सकती है।‌ राज्य सरकार राज्य की नौकरियों में अधिकतम बहाली राज्य के नौजवानों को हो, इस निमित्त कानून के दायरे में रहकर ही फैसला ले सकती है। कानून सम्मत फैसला लेना ही उचित है। लेकिन राज्य सरकार ने झारखंड कर्मचारी चयन आयोग स्नातक स्तरीय परीक्षा संचालन संशोधन नियमावली – 2021 को लागू कर राजनीतिक अदूरदर्शिता का परिचय दिया है।
हाईकोर्ट ने झारखंड कर्मचारी चयन आयोग स्नातक स्तरीय परीक्षा संचालन संशोधन नियमावली को असंवैधानिक बताते हुए इसे निरस्त कर दिया है। हाईकोर्ट ने इस नियोजन नीति को निरस्त करते हुए कहा कि ‘यह नियमावली भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 व 16 के प्रावधानों का उल्लंघन है । सरकार की यह नियमावली संवैधानिक प्रावधानों पर खरी नहीं उतरती है ।‌इसलिए इसे निरस्त किया जाता है’ । साथ ही इस नियमावली से की गई सभी नियुक्तियों व चल रही नियुक्ति प्रक्रिया को भी रद्द किया जाता है । हाईकोर्ट ने आयोग को नए सिरे से नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया है । इस फैसला में महत्वपूर्ण बात किया है कि इस नियमावली के तहत यह प्रावधान किया गया था कि सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों के लिए किसी भी नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल होने के लिए उनका झारखंड से ही मैट्रिक और इंटर पास होना अनिवार्य होगा । राज्य सरकार ने यहीं पर बड़ी भूल की है। नियोजन नीति के प्रावधानों को देखने से प्रतीत होता है कि यह सीधे-सीधे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। इस संदर्भ में विचारणीय पक्ष यह है कि राज सरकार अ ऐसी भूल क्यों की ? राज्य सरकार नियोजन नीति 2021 लागू कर झारखंड के छात्रों को एक उम्मीद दिखाई थी।‌ मेरी दृष्टि में यह राज्य सरकार की सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की एक कार्रवाई के अलावा और कुछ भी नहीं है। राज्य सरकार ऐसा कर झारखंड के बेरोजगार छात्रों ठगने जैसा कार्य किया है।
नियोजन नीति पर झारखंड हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि ‘हमने यह कानून बनाया था कि जो भी झारखंड से 10वीं और 12वीं पास करेगा, उसे प्राथमिकता के आधार पर नौकरी पर रखेंगे । क्या यह गलत हुआ था ? यह दुर्भाग्य है, इस राज्य का। चिंता मत कीजिए । इसकी पूरी कानूनी जानकारी लेकर इस पर भी उचित पहल की जाएगी’ । आगे मुख्यमंत्री ने कहा कि 1932 खतियान के मामले को भी गवर्नर साहब सीधे प्यार से फाइल आगे बढ़ा दें तो बहुत बढ़िया होगा। लेकिन इतना आसान नहीं है। इसके लिए यहां से दिल्ली तक दौड़ लगानी पड़ेगी। झारखंड के रोजगार नौजवानों के लिए राजनीतिक के साथ साथ कानूनी लड़ाई भी लड़ेंगे । नियोजन नीति के लिए सुप्रीम कोर्ट तक जाएंगे। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का यह कहना कि हाईकोर्ट ने कर्मचारी चयन आयोग स्नातक स्तरीय परीक्षा संचालन संशोधन नियमावली 2021 को रद्द कर दिया है। इसके विरोध में सुप्रीम कोर्ट जाएंगे । उन्होंने यह बात बहुत सहजता के साथ कह दी है। मैं राज्य के मुख्यमंत्री से यह पूछना चाहता हूं कि सुप्रीम कोर्ट जाकर क्या तीर मार लेंगे ? क्या सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट के फैसले बदल देगी ? मेरी दृष्टि में मुख्यमंत्री का यह बयान पूरी तरह बचकाना लगता है। मुख्यमंत्री को चाहिए कि झारखंड हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद इस नियोजन नीति पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। इस नियोजन नियमावली में जो त्रुटियां हैं, उन त्रुटियों पर कानून विशेषज्ञों की राय लेनी चाहिए। एक कानून सम्मत नियोजन नियमावली बनानी चाहिए । ताकि हाईकोर्ट को नियोजन नियमावली के विरुद्ध फैसला नहीं लेना पड़े।
अब सवाल यह उठता है कि अगर राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट इस नियोजन नियमावली के लिए जाती है, तब झारखंड के बेरोजगार छात्रों ने जो परीक्षा की तैयारी की है,उसका क्या होगा ? सर्वविदित है कि राज्य सरकार झारखंड हाईकोर्ट के फैसले के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट जाती है, तब क्या सुप्रीम कोर्ट तुरंत फैसला सुना देगी ? इसकी संभावना बहुत कम है । यह मामला सुप्रीम कोर्ट में दायर होने के बाद बहस एवं अन्य कानूनी प्रक्रियाओं में कितना समय लगेगा, कहना बहुत मुश्किल है। यह फैसला छः महीने में भी हो सकता है। एक साल में भी हो सकता है। दो साल में भी हो सकता है । अब सवाल यह उठता है कि विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी में लगे बेरोजगार छात्रों का क्या होगा ? क्या राज्य सरकार छात्रों को दो साल नौकरी में उम्र बढ़ाने की सीमा बढ़ा सकती है । इसका जवाब नहीं है। झारखंड सरकार ऐसा नहीं कर सकती है। तब सब कुछ जानकर झारखंड सरकार सुप्रीम कोर्ट क्यों जाना चाहती हैं ? इससे प्रतीत होता है कि राज्य सरकार झारखंड के बेरोजगार छात्रों को नौकरी देने के मूड में ही नहीं है । बेहतर होता कि राज्य सरकार नियोजन नीति की कमियों पर विचार कर एक कानून सम्मत नियोजन नीति बनाती।
झारखंड हाई कोर्ट का फैसला आने के बाद झारखंड कर्मचारी चयन आयोग ने परीक्षा आयोजन को लेकर जारी कैलेंडर वापस ले लिया है। आयोग द्वारा इस संबंध में गत शुक्रवार को पत्र जारी कर दिया गया है। आयोग द्वारा जारी पत्र में कहा गया है कि आयोग द्वारा परीक्षा कैलेंडर के माध्यम से आगामी विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षा की संभावित तिथियों की घोषणा की गई थी, उक्त परीक्षा को अपरिहार्य कारणों से विलोपित किया जाता है। हाईकोर्ट के फैसला के बाद आयोग ने जो कुछ भी आदेश जारी किया है, पूरी तरह कानून सम्मत है । ऐसा कर आयोग ने अपने कर्तव्य का निर्वहन किया है। परीक्षा संचालन संशोधन नियमावली 2021 के निरस्त हो जाने के बाद यह बात खुलकर सामने आती है कि किसी भी देश के किसी भी राज्य सरकार को यह अधिकार नहीं है कि कैबिनेट अथवा विधानसभा से भारत के संविधान के प्रावधानों के विरुद्ध फैसला ले । झारखंड सरकार ने नियोजन नीति के माध्यम से मौलिक अधिकारों पर एक प्रहार करने का काम किया है । फलस्वरूप नियोजन नीति को झारखंड हाईकोर्ट को निरस्त होना पड़ा। देश के हर राज्य सरकार अपने प्रांत के बेरोजगार नौजवानों को नौकरी देने के लिए फैसले लेती है । लेकिन कोई भी राज्य सरकार यह फैसला नहीं ले सकती है, जिससे लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन हो।
इस संबंध में यह भी जानना जरूरी है कि राज्य सरकार ने गजट नोटिफिकेशन संख्या 3849 दिनांक 10.8 .2021 के माध्यम से झारखंड कर्मचारी चयन आयोग स्तरीय परीक्षा संचालन संशोधन नियमावली 2021 लागू की थी। इस संशोधित नियमावली में कहा गया था कि सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों को झारखंड के मान्यता प्राप्त शैक्षणिक संस्थान से मैट्रिक व इंटर उत्तीर्ण करना अनिवार्य होगा तथा अभ्यार्थी को स्थानीय रीति रिवाज ,भाषा व परिवेश की जानकारी रखना अनिवार्य होगा। लेकिन झारखंड राज्य के आरक्षण नीति से आच्छादित अभ्यर्थियों के मामले में इस प्रावधान को शिथिल कर दिया गया था। नियमावली में हिंदी व अंग्रेजी भाषा की सूची से बाहर कर दिया गया था। तथा उर्दू को क्षेत्रीय व जनजातीय भाषा की सूची में शामिल किया गया था। झारखंड सरकार के इस नोटिफिकेशन से प्रतीत होता है कि राज्य सरकार इस नोटिफिकेशन के माध्यम से वोट की राजनीति कर रही है। यह अच्छी बात नहीं है।
अभी भी देर नहीं हुई है। राज्य सरकार झारखंड के लाखों छात्रों की हित की रक्षा के लिए गंभीर हो । राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट जाने से बेहतर होगा कि नियोजन नीति की त्रुटियों को जितना जल्द हो सके दूर करें । राज्य सरकार का यह फैसला बेरोजगार छात्रों के हित में होगा।

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