Saturday, September 7, 2024
HomeJharkhandरामेश्वर महतो जीवन पर्यंत शिक्षा का अलख जगाते रहे

रामेश्वर महतो जीवन पर्यंत शिक्षा का अलख जगाते रहे

(12 जुलाई, झारखंड के स्वाधीनता सेनानी रामेश्वर महतो की 11 वीं पुण्यतिथि पर विशेष)

विजय केसरी

झारखंड के महान स्वाधीनता सेनानी रामेश्वर महतो जीवन पर्यन्त शिक्षा का अलख जलते रहे थे। उनका जीवन त्याग और बलिदान से ओतप्रोत रहा था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आह्वान पर वे स्वाधीनता आंदोलन से जुड़े थे। स्वाधीनता आंदोलन से जुड़ने के बाद उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन देश की आजादी के नाम कर दिया था। देश की आजादी के बाद वे सत्ता की राजनीति से सदा दूर रहे और जीवन पर्यंत शिक्षा का अलख जगाते रहे थे। इसके साथ ही वे सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ भी संघर्ष रत रहे थे । वे देश की आजादी के लिए महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, डॉ० राजेंद्र प्रसाद, मौलाना अबुल कलाम आजाद, बाबू राम नारायण सिंह जैसे बड़े राष्ट्रीय नेताओं के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते रहे थे। अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें कई बार पकड़ने की कोशिश की थी, लेकिन रामेश्वर महतो हर बार फरार हो जाया करते थे । 1940, रामगढ़ में संपन्न भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 53 वां महाधिवेशन में रामेश्वर महतो ने एक स्वयंसेवक के रूप में सराहनीय योगदान दिया था। संत विनोवा भावे के भूदान यज्ञ आंदोलन में भी उनकी महती भूमिका रही थी। उनके प्रयास से भूदान यज्ञ आंदोलन को झारखंड में बड़ी सफलता मिली थी। महात्मा गांधी ने जब रामगढ़ अधिवेशन में समाज में व्याप्त दहेज प्रथा, छुआछूत, अशिक्षा, अंधविश्वास जैसी कुरीति के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष करने का ऐलान किया था । इस एलान का रामेश्वर महतो पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि वे सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आजीवन संघर्षरत रहे थे । उनका जीवन सत्य और अहिंसा से ओतप्रोत था। वे सहज, सरल और मृदुभाषी थे । उन्होंने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन को गति प्रदान करने के लिए हजारीबाग जिला में कांग्रेस का जबरदस्त संगठन खड़ा किया था।
रामेश्वर महतो जी का बचपन बहुत ही कठिनाइयों के दौर से गुजरा था । उनका जन्म सन 1906 में हुआ था। जब वे मात्र छः माह के थे, तब उनकी माता का देहावसान हो गया था। जब वे एक वर्ष के हुए तो उनके पिताजी का निधन हो गया था । उनका जन्म हजारीबाग जिला के ग्राम चंदा में जरूर हुआ था, लेकिन उनका पालन पोषण मेरू के एक रिश्तेदार तेज नारायण महतो के घर हुआ था। उनकी शिक्षा मात्र मिडिल तक ही हो पाई थी। उन्हें पढ़ने की प्रबल इच्छा थी, लेकिन वे पारिवारिक उलझनों के कारण आगे पढ़ नहीं पाए थे। बचपन से ही उनमें सामाजिक समाज सेवा करने की प्रवृत्ति रही थी। वे खुद भूखे रहकर दूसरे को अपना भोजन दे दिया करते थे। ईश्वर पर उन्हें बड़ी आस्था गहरी आस्था थी। वे विपरीत परिस्थितियों में भी कभी विचलित नहीं होते थे, बल्कि उसका सामना पूरी शक्ति के साथ किया करते थे। कृषक के घर जन्म लेने के कारण वे जीविकोपार्जन के लिए कम उम्र में ही खेती किसानी से जुड़ गए थे । उनकी शादी कम उम्र में ही कर दी गई थी । रामेश्वर महतो की पढ़ाई मिडिल तक जरूर हुई थी, लेकिन उनमें ज्ञान अर्जन करने की अद्भुत क्षमता थी। वे नियमित रूप से पुस्तकें और अखबार पढ़ा करते थे। वे अपने विचारों को अपने गांव के मित्रों के समक्ष रखा करते थे । रामेश्वर महतो के विचार सुनकर उनके मित्र गण काफी प्रसन्न हो जाते थे । उनके कई मित्रों का यह भी कथन था कि रामेश्वर महतो एक दिन जरूर कुछ बड़ा करेगा । उनके मित्रों की बात सच साबित हुई । रामेश्वर महतो ने महात्मा गांधी के आह्वान पर अपना संपूर्ण जीवन स्वाधीनता आंदोलन के नाम कर दिया था। उन्होंने हजारीबाग जिला अंतर्गत ग्राम चंदा में कांग्रेस का एक बड़ा संगठन तैयार किया था। जिसमें काफी संख्या में युवा सम्मिलित हुए थे।
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कृष्ण बल्लभ सहाय एवं संविधान सभा के सदस्य बाबू राम नारायण सिंह के साथ मिलकर स्वाधीनता आंदोलन को गति प्रदान करने के लिए हजारीबाग जिला में भी कांग्रेस का एक बड़ा संगठन भी तैयार किया था। उन्होंने रामगढ़ के पूर्व विधायक सह स्वाधीनता सेनानी मोतीराम ठाकुर जी के साथ ग्राम चंदा में कांग्रेस पार्टी की एक बड़ी रैली का आयोजन किया था। जिसकी चर्चा आज भी ग्राम चंदा में होती है। इस रैली के बाद ब्रिटिश हुकूमत के सिपाहियों ने रामेश्वर महतो को गिरफ्तार करने के लिए एड़ी चोटी एक कर दिया था। लेकिन वे सब रामेश्वर महतो को गिरफ्तार कर नहीं पाए थे। रामेश्वर महतो उन सब की आंखों के सामने से ऐसे भाग खड़े होते थे कि किसी को पता ही नहीं चल पाता था। हजारीबाग केंद्रीय कारा में बंद राष्ट्रीय नेताओं के पत्रों को आंदोलनकारियों तक पहुंचाने में उनकी भूमिका बड़ी निराली होती थी। हजारीबाग के जिला कलेक्टर को इस बात की जानकारी सीआईडी द्वारा मिल जाती थी। इसके बावजूद रामेश्वर महतो को गिरफ्तार नहीं कर पाते थे। रामेश्वर महतो स्वाधीनता आंदोलन के साथ समाज में सांप्रदायिक सौहार्द बनी रहे। इस निमित्त नियमित बैठकें किया करते थे । आजादी के बाद देश भर में भड़के दंगे की आग को बुझाने में उनकी भूमिका सदा याद की जाती रहेगी।उनका विश्वास था कि समाज में शिक्षा के जागरण से ही सामाजिक कुरीतियों का अंत संभव हो सकता है। इसलिए उन्होंने शिक्षा को जन जन तक पहुंचाने के जोर दिया था । कामाख्या नारायण उच्च विद्यालय के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने शिक्षा को अंतिम व्यक्ति तक जोड़ने का काम किया था । 1978 में उन्होंने अपने पारिवारिक पांच एकड़ जमीन को रामेश्वर महतो उच्च विद्यालय चंदा के नाम दान कर दिया था। उस जमीन पर आज भी यह उच्च विद्यालय संचालित है। इस विद्यालय में हजारों बच्चें आज भी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इस विद्यालय से पढ़े हजारों विद्यार्थी गण देश के विभिन्न प्रांतों में सरकारी और गैर सरकारी सेवाओं के महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत हैं। रामेश्वर महतो उच्च विद्यालय का सन 1982 में बिहार के तत्कालीन शिक्षा मंत्री सुरेंद्र प्रसाद तरुण के प्रयास से सरकारी करण हुआ था। इस विद्यालय का शिलान्यास तत्कालीन सांसद रीत लाल वर्मा ने किया था।
देश की आजादी के बाद रामेश्वर महतो चाहते तो कांग्रेस पार्टी से टिकट प्राप्त कर विधानसभा अथवा सांसद का चुनाव लड़ सकते थे। लेकिन उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का संकल्प लिया था। वे कांग्रेस संगठन की मजबूती लिए आजादी के बाद ग्राम चंदा के 25 वर्षों तक प्रखंड अध्यक्ष रहे थे। साथ ही वे हजारीबाग जिला कांग्रेस कमेटी के सक्रिय सदस्य रहकर संगठन को मजबूत करते रहे थे । आजादी के बाद वे गांधी के संदेशों को जन जन तक पहुंचाने के लिए बराबर गोष्ठियों का आयोजन किया करते थे। गांधी के सत्य और अहिंसा के संदेश को लोगों के बीच रखते थे । संत विनोबा भावे के भूमि दान यज्ञ आंदोलन को झारखंड प्रांत में सफल बनाने के लिए उन्होंने महती भूमिका अदा की थी । उन्होंने संत विनोबा भावे के साथ वे कदम से कदम मिलाकर झारखंड के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों का भ्रमण किया था। उन्होंने हजारों भूमिहीनों को खेती योग्य भूमि दिलवाई थी । देश की आजादी के बाद समाज में आए बदलाव से वे थोड़ा दुखी थे । वे गांधी की तरह ही ग्रामोत्थान के साथ शहरोत्थान करना चाहते थे। ऐसा ना होने से वे दुःखी जरूर हुए थे। अपनी इस असहमति की बात को संगठन के पदाधिकारियों के बीच जरूर रखते थे । वे बड़ी से बड़ी बात को बहुत ही सहजता के साथ रखते थे। 12 जुलाई 2013 को 107 वर्ष की उम्र में उनका निधन हुआ था। वे लगभग 22 वर्ष की उम्र में स्वाधीनता आंदोलन से जुड़े थे। उन्होंने 85 बर्षों तक देश की सेवा की थी। रामेश्वर महतो जी का जीवन त्याग और बलिदान से ओतप्रोत है। वे जीवन पर्यंत शिक्षा का अलख जगाते रहे थे। वे आजीवन समाज में व्याप्त कुरीति के खिलाफ भी संघर्षरत थे। रामेश्वर महतो के दो पुत्र क्रमशः सेवानिवृत्त शिक्षक कमल राम मेहता एवं बटेश्वर प्रसाद मेहता हुए । दोनों अपने पिता को गुरु मानकर उनके पद चिन्हों पर चलते रहें। उनका बड़ा पुत्र कमल राम मेहता अब इस दुनिया में नहीं रहे। उन्होंने पिता के शिक्षा का अलख जागने के कार्यक्रम को बहुत ही मजबूती के साथ समाज में स्थापित किया था। उनका दूसरा पुत्र बटेश्वर प्रसाद मेहता(वरिष्ठ भाजपा के नेता) समाज में शिक्षा का प्रसार और नवजागरण में अपनी महती भूमिका अदा कर रहे हैं।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments