भारतीय लोकतंत्र के सजग प्रहरी पूर्व प्रधानमंत्री, भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई अपने उत्कृष्ट कार्यों के लिए सदा याद किए जाते रहेंगे। भारतीय राजनीति में उनका प्रवेश कुछ विशेष कार्यों को करने के लिए हुआ था। अपने लंबे राजनीतिक जीवन में उन्होंने भारतीय राजनीति को जो दिशा दी, सदा लोगों को प्रेरित करता रहेगा। उनका संपूर्ण जीवन भारतीय राजनीति के इर्द-गिर्द ही बीता था । उनका जन्म 25 दिसंबर 19 24 को हुआ था। अर्थात भारत की आजादी से मात्र 23 वर्ष पूर्व उनका इस धरा पर आना हुआ था। उन्होंने युवावस्था में प्रवेश करते ही देश की आजादी के एक सेनानी के रूप में अपना नाम दर्ज करवा लिया था। उन्हें छात्र जीवन से ही राजनीति बहुत पसंद थी। उन्होंने देश की एकता और अखंडता को मजबूती प्रदान करने के लिए ही भारतीय राजनीति में दस्तक दी थी। उन्होंने कहा कि ‘राजनीति कोई व्यवसाय नहीं बल्कि राष्ट्र की सेवा ही इसका लक्ष्य होना चाहिए’।
अटल बिहारी वाजपेई समाज के अंतिम व्यक्ति तक सत्ता का लाभ पहुंचाना चाहते थे। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उनका राजनीति में आना हुआ था। वे इस धरा पर 94 वर्षों तक रहे। वे सदा समाज के सभी वर्गों के लोगों के कल्याण के लिए अग्रसर रहे थे । वे देश के तीन बार प्रधानमंत्री बने थे । दो बार उनका प्रधानमंत्री बनना और पद से हट जाना भारतीय राजनीति के लिए उदाहरण बन गया। तीसरी बार 1999 में जब वे प्रधानमंत्री बने, तब उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया था । वे एक राजनेता के साथ कवि और पत्रकार भी थे। राजनीति में रहकर वे देश के कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में कई आलेख लिखा करते थे। बाद के कालखंड में उन्होंने राष्ट्रधर्म, पांचजन्य, वीर अर्जुन जैसे प्रतिष्ठित पत्रिकाओं का संपादन भी किया ।
अटल बिहारी वाजपेई भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में एक थे। वे 1968 से 1973 तक भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष रहे। भारतीय जनसंघ का अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने संपूर्ण देश में पार्टी को मजबूत आधार प्रदान किया । अब अटल बिहारी वाजपेई एक बड़े नेता के रूप में देशभर में जाने लगे थे । अटल बिहारी वाजपेई सहज, सरल और मधुर प्रकृति के व्यक्ति थे । यह मेरा सौभाग्य रहा कि मुझे कई बार उनके भाषणों को सीधा सुनने का अवसर भी प्राप्त हुआ। उन्हें नजदीक से देखने का भी अवसर प्राप्त हुआ । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं के साथ उन्हें भोजन पचने का भी अवसर प्राप्त हुआ।
वे अपने काम के प्रति बहुत ही निष्ठावान राजनेता थे। वे हास्य – विनोद को जीवन के लिए बहुत जरूरी मानते थे। राजनीति उनके लिए सिर्फ राजनीति नहीं थी बल्कि राजनीति के माध्यम से देश के करोड़ों लोगों की सेवा हो। वे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत करना चाहते थे । उनका मत था कि ‘भारत में निवास करने वाले चाहे जिस धर्म, जाति,वर्ग के लोग हों, सभी भारत माता की संतान हैं। सभी मिलकर देश को मजबूत बनाएं। भारत में निवास करने वाले लोगों को ऐसा महसूस हो कि भारत राष्ट्र उनका अपना है’। जब पहली बार अटल बिहारी वाजपेई लोकसभा में पहुंचे थे,तब वे बिल्कुल युवा थे। लोकसभा में अपने पहले ही वक्तव्य से उपस्थित सांसदों को अपनी ओर आकृष्ट कर लिया था । उनकी बातों में दम होता था। वे लोकसभा में अपना वक्तव्य देने से पूर्व गहराई से अध्ययन मनन करते थे । लोकसभा में सांसद गण उनकी बातों को बहुत ही शांति पूर्वक सुना करते थे। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने भी अटल बिहारी बाजपाई के वक्तव्य की सराहना की थी । जबकि अटल बिहारी वाजपेई ,जवाहरलाल नेहरू की नीतियों की जमकर आलोचना किया करते थे। अटल बिहारी वाजपेई का लोकतंत्र पर गहरा विश्वास और आस्था थी। वे समय-समय पर अपने वक्तव्य के माध्यम से देशवासियों को बताते रहते थे कि ‘किसी भी लोकतांत्रिक देश की शक्ति जनता के हाथों में निहित होती है। इसलिए जनता के अधिकारों की रक्षा करना राजनीति का पहला कर्तव्य है’। उनका मानना था कि ‘आजादी का सच्चे अर्थों में यही मतलब है कि आम जनता के मौलिक अधिकार सुरक्षित रहें। हर भारतीय स्वतंत्र रूप से अपनी भावनाओं को प्रकट कर सकें। देश के सभी नागरिक आजादी पूर्वक अपनी बातों को रख सकें। केंद्र में चाहे जिसकी भी सरकार हो, जनता के अधिकारों को कुचलने का अधिकार न हो’।
1975 में जब देश के पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लागू की थी। अटल बिहारी बाजपेई ने आपातकाल का जमकर विरोध किया था। फलत: अटल बिहारी वाजपेई को जेल में डाल दिया गया था। इसी दरमियान लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में कई राजनीतिक दलों का विलय कर जनता पार्टी का गठन किया गया था। तब अटल बिहारी वाजपेई ने एक ऐतिहासिक फैसला लेकर भारतीय जनसंघ पार्टी का जनता पार्टी में विलय कर दिया था। अटल बिहारी वाजपेई के इस निर्णय का उनके ही पार्टी के कई नेताओं ने जमकर विरोध किया था। लेकिन उन्होंने इंदिरा गांधी की तानाशाही के विरुद्ध में इस निर्णय को उचित बताया। उन्होंने लोकतंत्र की रक्षा के लिए इसे एक उचित कदम बताया।
1977 में इमरजेंसी के समापन की घोषणा के बाद जब देश में आम चुनाव हुआ, इस चुनाव में जनता पार्टी को देशभर में जीत हासिल हुई। केंद्र में जनता पार्टी के नेतृत्व में नई सरकार का गठन हुआ। मोरारजी देसाई को देश का प्रधानमंत्री बनाया गया। अटल बिहारी वाजपेई, जनता पार्टी की सरकार में विदेश मंत्री बने। उनका विदेश मंत्री बनने के साथ ही पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में सुधार हुआ । उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में भाषण देकर हिंदी के गौरव को बढ़ाया। उनका संयुक्त राष्ट्र संघ में दिया गया भाषण आज भी याद किया जाता है । उनके विदेश मंत्री के कार्यकाल में अमेरिका सहित कई यूरोपियों देशों के संबंधों में व्यापक सुधार हुए। भारत की विदेश नीति की चर्चा विश्व भर में होने लगी थी। अब अटल बिहारी वाजपेई एक अंतरराष्ट्रीय नेता के रूप में जाने लगे थे। मोरारजी देसाई की सरकार 27 महीने से अधिक चल नहीं पाई। जनता पार्टी टूट गई। तब उन्होंने अपनी मूल पार्टी को जनता पार्टी से अलग कर दिया। अपनी पार्टी के मूल विचारधारा के साथ उन्होंने एक नई पार्टी का गठन किया गया, जिसका नामकरण भारतीय जनता पार्टी किया गया। भारतीय जनता पार्टी को देशभर में जन जन तक पहुंचाने के लिए अटल बिहारी वाजपेई और लालकृष्ण आडवाणी सहित कई नेताओं ने अपनी पूरी शक्ति लगा दी थी । फलत: भारतीय जनता पार्टी एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में स्थापित हो गई। भारतीय जनता पार्टी अपने पहले लोकसभा चुनाव में मात्र 2 सीटें ही जीत पाई थी । धीरे धीरे कर 1996 तक उनकी पार्टी देशभर में एक बड़ी पार्टी के रूप में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज की।
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के नेतृत्व में उन्हें 1996 और 1998 में कुछ कुछ दिनों के लिए प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेना पड़ा था। दोनों बार उनकी सरकार द्वारा बहुमत सिद्ध न कर पाने के कारण इस्तीफा देना पड़ा था। लेकिन सरकार बचाने के लिए उन्होंने कोई भी गलत समझौता नहीं किया। उन्होंने बहुमत सिद्ध करने के लिए वैसा कोई कार्य नहीं किया, जिससे भारतीय राजनीति दागदार होती। 1999 में पुण: उन्हें राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार में देश का दसवां प्रधानमंत्री बनया गया। इस बार उन्होंने अपना पूरा 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा किया। इस दरमियान उन्होंने संपूर्ण देश को जोड़ने वाला चतुर्भुज मार्ग का निर्माण किया। कई बड़े-बड़े नहरों का निर्माण किया। उन्होंने देश को आणविक रूप से मजबूत करने के लिए पोखरण परीक्षण किया। कई नए मिसाइलों का परीक्षण किया। उन्होंने देश की रक्षा सेवा को बहुत ही मजबूत किया। 2014 के लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की हार हुई। इस पराजय को उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया । लेकिन उन्होंने अपने नैतिक मूल्यों के साथ कोई समझौता नहीं किया।अटल बिहारी वाजपेई देश के एक सर्वमान्य नेता के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल हुए। विरोधी भी उनकी सराहना करते नहीं थकते थे। अटल बिहारी वाजपेई सच्चे अर्थों में लोकतंत्र के एक सजग प्रहरी थे।
लोकतंत्र के सजग प्रहरी : अटल बिहारी वाजपेयी
(25 दिसंबर,पूर्व प्रधानमंत्री, भारत रत्न अटल बिहारी बाजपेई की जयंती पर विशेष)